हिन्दी व अंग्रेजी विषय के व्याख्याताओं के पद स्वीकृत नही होने से विद्यार्थियों मे रोष
शिक्षाBy Sirohiwale
सिरोही ब्यूरो न्यूज़
राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ के प्रदेश सहमंत्री व वरिष्ठ शिक्षक नेता राव गोपालसिंह पोसालिया ने हिन्दी व अंग्रेजी के व्याख्याता पद स्वीकृत नही करने पर रोष जताया।
मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत व शिक्षामंत्री गोविन्दसिंह डोटासरा से सत्र 2020-21 प्रारम्भ होने से पूर्व पद स्वीकृत करने की पूरजोर मांग की ।राव के अनुसार प्रदेश के 7 हजार से अधिक सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालयों में हिन्दी-अंग्रेजी विषय के पद ही स्वीकृत नहीं है ।शिक्षक संघ राष्ट्रीय के प्रदेश संयुक्त मंत्री सतीश शर्मा के अनुसार
सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर सुधारने एवं नामांकन बढ़ाने के नाम पर सरकार हर वर्ष करोड़ों रुपए खर्च करती है, बावजूद इसके ‘नाव में सुराख’ की तरह कुछ ऐसी कमियां छोड़ दी जाती हैं, जिसके कारण सरकारी स्कूलों में शिक्षा की नैया तैरने की बजाए डूबती जा रही है।जी हां, शिक्षा विभाग ने करीब छह वर्ष पूर्व प्रदेश भर में छह हजार से अधिक माध्यमिक विद्यालयों को उच्च माध्यमिक में क्रमोन्नत किया था। इसमें वर्ष 2013-14 में 1086 तथा वर्ष 2014-15 में एक साथ पांच हजार विद्यालयों को क्रमोन्नत किया गया।
इसके बाद भी विधायकों एवं मंत्रियों की डिजायर पर सैकड़ों विद्यालय क्रमोन्नत किए गए हैं, जिनको अब तक सात हजार से अधिक विद्यालय क्रमोन्नत किए जा चुके हैं, लेकिन इनमें अनिवार्य विषय हिन्दी और अंग्रेजी के व्याख्याता के पद स्वीकृत नहीं किए गए हैं। ऐसे में शिक्षा का हश्र क्या होगा, यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। हालात यह है कि न तो विभाग के जिम्मेदार अधिकारी एक्शन ले रहे हैं और न ही सरकारी नीतिगत निर्णय से इन पर मोहर लगा पा रहे हैं। शायद सरकार पैसा बचाने के चक्कर में बच्चों के भविष्य से खेलकर उन्हें गर्त में धकेल रही है।शिक्षक नेता राव के अनुसार सरकार की ये बेतूकी कैसी शर्त है कि 80 विद्यार्थी होंगे तो ही पद स्वीकृत होगा। शिक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार वर्ष 2014 में सरकार ने स्टाफिंग पैटर्न लागू कर दिया, जिसमें कहा गया कि जिन उच्च माध्यमिक विद्यालयों में कक्षा 11 व 12 में नामांकन 80 (40-40) से अधिक होगा, वहां अनिवार्य विषयों के पद स्वीकृत किए जाएंगे। ऐसे में क्रमोन्नत विद्यालयों में करीब 6 वर्षों से हिन्दी व अंग्रेजी व्याख्याताओं के पद रिक्त होने से विद्यार्थी इन विषयों को भली प्रकार नहीं पढ़ पा रहे हैं।
जहां हिन्दी साहित्य के व्याख्याता हैं, वे विद्यार्थी तो हिन्दी का अध्ययन व्याख्याता से कर रहे हैं, शेष बच्चों को मजबूरी में वरिष्ठ अध्यापक या अध्यापक से ही पढकऱ संतुष्ट होना पड़ता है। ऐसे में विषय विशेषज्ञता प्राप्त करना व भाषायी दक्षता हासिल करना उनके लिए आज भी दूर की कौड़ी नजर आता है।कर्मचारी महासंघ के जिला अध्यक्ष दशरथसिंह भाटी के अनुसार प्रदेश में 16 हजार से अधिक पद रिक्त है ।राजस्थान में वर्तमान में अनिवार्य विषय व्याख्याताओं के करीब 14 हजार से अधिक पद स्वीकृत नहीं है। दूसरी ओर इन विषयों के पहले से दो हजार पद रिक्त चल रहे हैं। इस प्रकार इन दोनों अनिवार्य विषयों के करीब 16 हजार से अधिक पद रिक्त होने से कक्षा 9 से 12 के करीब 17 लाख विद्यार्थियों का भविष्य स्वयं अध्ययन करने अथवा वरिष्ठ अध्यापकों व अध्यापकों पर टिका है।
राजस्थान में वैसे भी जरूरतमंद एवं ग्रामीण बच्चे सरकारी विद्यालयों में अध्ययन करते हैं और अंग्रेजी विषय से कतराते हैं। ऐसे में उन पर दोहरी मार किंचित उनके भविष्य से महज खिलवाड़ के सिवा कुछ नहीं है।समय रहते ध्यान देना होगा ।शिक्षा विभाग में नवाचार और बदलाव का दौर तो निरंतर जारी है, लेकिन संसाधन व शिक्षकों की कमी उसे पूर्णता प्रदान नहीं करने देती। एक और कम्प्यूटर व तकनीकी शिक्षा का दंभ भरा जाता है वहीं अंग्रेजी ज्ञान के नाम पर खानापूर्ति होने से ये ख्वाबों के महल ताश के पत्तों की तरह ढहते नजर आ रहे हैं। समय रहते इस विकट समस्या का निराकरण नहीं किया गया तो बच्चे सरकारी विद्यालयों से दूरी बना लेंगे एवं नामांकन घटना अवश्यंभावी होगा।
हिन्दी ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों की अंग्रेजी कमजोर होती है ।कॉलेज में ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले छात्रों की अंग्रेजी काफी कमजोर रहती है, इसलिए वे कॉलेज में भी अंग्रेजी से दूर भागते हैं। हर वर्ष लगाए जाने वाले विशेष शिविर में भी विद्यार्थियों की संख्या बहुत कम रहती है। यदि स्कूल स्तर पर अंग्रेजी मजबूत होगी तो कॉलेज में उन्हें परेशानी नहीं होगी।प्रत्येक ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर क्रमोन्नत किए गए विद्यालयों में हिन्दी-अंग्रेजी विषय के पद स्वीकृत नहीं होने से वरिष्ठ अध्यापक ही पढ़ा रहे हैं। नये सत्र से पहले यह पद स्वीकृत कर भरना छात्र हित मे आवश्यक है ।सरकार यदि चाहे तो वरिष्ठ अध्यापक हिन्दी व अंग्रेजी को पदोन्नति देकर यह पूर्ति कर सकती है ।जिससे वित्तीय नुकसान भी नही होगा ।सत्रारम्भ से पहले सभी रिक्त पद भरने की मनमोहन शर्मा , मन्नाराम कोली , विजय गौतम , भूरसिंह मीणा , मांगीलाल टांक , दिनेश रावल , अरविंद परमार , विनोद सरैल ने पूरजोर मांग की।