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महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष के अवसर कार्यक्रम का हुआ आयोजन

सिरोही ब्यूरो न्यूज़

रिपोर्ट हरीश दवे


मूर्ख.... तुमनेसिर्फ एक आकार की हत्यो की है

नाटक के बहाने इतिहास के भ्रम एवं विसगंतियां उजागर
महात्मा  गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष के अवसर पर मंचित नाटक में भारतीय इतिहास के भ्रम एवं विसंगतियों के पृष्ठों को पलटने का एक प्रयास

सिरोही  अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चल कर भारत को ब्रिटिश दासता से मुक्त कराने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष के अवसर पर सिरोही स्थित महात्मा  गांधी राजकीय उच्चर माध्यमिक विद्यालय, पुराना भवन में‘हत्या एक आकार की‘ का नाटक मंचन किया गया। महात्मा गांधी की हत्या के ऐतिहासिक आधार पर मंचित यह नाटक महज एक नाटक न होकर भारतीय इतिहास के पृष्ठों को पलटने का भी एक प्रयास था, जो भ्रम एवं विसंगतियों से घिरा हुआ है। ललित सहगल द्वारा लिखित इस नाटक में प्रतीकात्मक रूप से गांधी पर लगाए गए आरोपों व उसके खंडन को प्रस्तुत किया गया, जो दर्शकों को कुछ सोचने पर विवश कर रहा था। नाट्य मंचन के दौरान जिला पुलिस अधीक्षक व उपस्थित गणमान्य जन भी रंगमंच के बेजोड कलाकारो के जीवन्त गांधी जीवन पर अभिनय को देखकर मंत्र मुग्ध हो गये।

नाटक शुरू होने पर मंच पर चार लोग दिखते हैं, जो ‘उस’ की हत्या करना चाहते हैं, जिसके सत्य, अहिंसा एवं सांप्रदायिक सद्भाव के नारों ने उनकी नजर में ये नारे ‘फालतू’ ही नहीं बल्कि ‘खतरनाक’ भी हैं हिन्दू राष्ट्र को कमजोर कर दिया है, जो ‘क्रांतिकारियों’ की आलोचना करता रहा हैय जिसने मौत के डर पर विजय पा ली है। उसने जनता पर ऐसा जादू कर दिया है कि उसे जान से मार कर ही चुप किया जा सकता है।

ये चारों लोग अपने मिशन पर निकलने ही वाले हैं कि उनमें से एक को संदेह होने लगता है कि मिशन सही है या गलत उसे मनाने की तमाम कोशिशें नाकाम जाती हैं क्योंकि वह चाहता है कि किसी को प्राणदंड देने के पहले अपराध और दंड पर गंभीर विचार हो।

आखिरकार तय होता है कि एक मुकदमे का अभिनय किया जाए, जिसे संदेह है, वह ‘उस अभियुक्त’ एवं उसके वकील की भूमिका करे,जिसे गोली चलानी है वह ‘सरकारी वकील’ की भूमिका करे, तीसरा साथी जज बने एवं चैथा बाकी बचे सारे रोल निभाए। इस दौरान कुछ अभिनेताओं यथा निशांत कुमार, पूजा सहाय, राजेश, निखिल शर्मा, विजय कुमार आदि को दर्शकों के बीच भी बैठाकर रखा गया था, जिनका काम मुकदमे के दौरान सत्य, अहिंसा, सांप्रदायिक सद्भाव जैसी बातें करने वाले ‘उस खतरनाक आदमी’ पर सवालों की बौछार करना था। हुआ यह कि सवाल ऐसे अभिनेताओं के अलावा वास्तविक दर्शकों ने भी उछाले, और ‘उस’ की भूमिका निभा रहे अनुरंजन शर्मा को उनके जबाव देने पड़े। सवाल पूछने वाले की भूमिका करने वाले अभिनेता के गुस्से से फड़कते नथुनों पर ‘उस आकार’ की शांत आवाज और बुनियादी तौर से तर्कपूर्ण बातें भारी पड़ रही थीं। जज की भूमिका योगेश, सरकारी वकील की भूमिका कमलेश बैरवा एवं चैथे व्यरक्ति की भूमिका में सोमेश ने काफी प्रभावी अभिनय किया।

नाटक के अंत में, ‘उस’ की भूमिका निभा रहे पात्र के तर्कों का जब जबाव देते नहीं बनता है, तो बाकी तीनों अपने हत्यारे मिशन पर निकल जाते हैं। थोड़ी देर बाद नेपथ्य से तीन गोलियाँ चलने की आवाज आती है। मंच पर अकेला छूट गया अभिनेता वेदना भरी आवाज में याद दिलाता है, यह न तो पहली बार हुआ है न आखिरी बार३ उसे बार-बार मारा गया है, बार-बार मारा जाएगा।वह मानवता के लिए कुर्बानी देने वाले महापुरुषों का उदाहरण सामने रखता है। मंच पर छूट गये साथी का आखिरी कथन काफी प्रभावी रहने के साथ सबको सोचने के लिए भी विवश करने वाला था। यह कि...   ‘उसने तो 1919 में ही कह दिया था कि उसके लिए इससे ज्यादा खुशी से कोई बात हो नहीं सकती कि उसके प्राण हिन्दू-मुसलिम एकता की राह पर जाएँ। वह तो नाच रहा होगा खुशी से। ...उसकी नहीं, तुमने केवल एक आकार की हत्या की है।

नाटक मंचन के बाद मुख्य अतिथि पुलिस अधीलक्षक कल्याशणमल मीणा ने इस तरह के सांस्कृातिक प्रयास की सराहना की। शुरुआत में नाटक का निर्देशन कर रहे अभिषेक गोस्वाीमी ने नाटक के बारे में एवं फाउंडेशन के सदस्ये अमोलने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के कार्यों को संक्षेप में सामने रखा। बालकिशन शर्मा ने आगंतुकों का अभिवादन किया। इस अवसर पर अतिरिक्तं जिला शिक्षा अधिकारी माध्यशमिक सिरोही जसवंत सिंह, सहायक परियोजना अधिकारी समग्र शिक्षा कांतिलाल खत्री, उपनिदेशक बाल विकास परियोजनाकमला,वरिष्टज व्याोख्या ता डायट रोहति विष्ट,, एसीबीईओ हितेश लुहार,प्रिंसिपल जगदीश आढ़ा, ईश्वर सिंह, मनोहर सिंह,समाज सेवी रघुनाथ माली, भीख सिंह आदि उपस्थित थे।

महात्मा  गांधी के कथनों का सटीक उपयोग नाटक में गाँधीजी के कथनों का सटीक उपयोग किया गया, जैसे- ‘जब मेरे जैसे दोषपूर्ण व्यक्ति के जरिए सत्य और अहिंसा का प्रभाव इतना हो सकता है, तो सचमुच निर्दोष मनुष्य के हाथों इनका प्रभाव कहाँ तक पहुँचेगा?’ यह भी कि, ‘आप कहते हैं कि मैं तपस्या करने हिमालय चला जाऊँ, लेकिन मेरी तपस्या का हिमालय तो वहाँ है जहाँ मनुष्य की पीड़ा है। इस पीड़ा को दूर करने के लिए जो कर सकता हूँ, वह कर लूँ, फिर आप आगे चलिएगा, मैं आपके पीछे-पीछे हिमालय चलूँगा।’ अभी व्याप्त है विसंगतियां

ललित सहगल ने ‘हत्या एक आकार की’ नाटक की रचना महात्मा गांधी के जन्म  शताब्दी  के आसपास के समय में की थी,संभवतः एक-दो वर्ष पहले। अब 150 वीं जयंती पर भी वे विसंगतियां व्याप्त हैं, जिनको लेकर नाटककार ने इसकी रचना की थी। विचारणीय है कि वर्तमान समय में यह नाटक और प्रासंगिक हो गया है। इस नाटक पर एक अंग्रेजी फिल्मे भी बन चुकी है। कार्यक्रम के समापन पर जिला पुलिस अधिक्षक कल्याणमल मीणा ने भी गांधी जी के जीवन दर्शन और आज की नाट्य प्रस्तुति को उत्कृष्ट बताया।

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