शिक्षा

ए बी सी डी के चक्कर में भूल गए क से घ

सिरोही ब्यूरो न्यूज़

अंग्रेजी के 26 अक्षर खुलकर बोल लेते है, लेकिन हिंदी की वर्णमाला नहीं बोल पा रहे बच्चे

‘ए बी सी डी’ की चकाचौंध में ‘अ से ज्ञ’ का रुझान घटा। दीवारों पर हिंदी वर्णमाला बच्चों को हररोज पढ़वाई जाती थी।

स्कूल का यह सिस्टम होता था कि पढ़ाई शुरू होते ही एक बार सभी को वर्णमाला बोलना अनिवार्य था। लेकिन अब इसका रुझान कम हो गया है।

पढ़े लिखे वर्ग के बच्चों को नर्सरी कक्षा से ही अंगे्रजी की शुरुआत और सिखाना, जो रूचि को कम कर रहा है। शिक्षा विभाग ने पहले छोटे बच्चों को वर्णमाला सिखाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान के तहत ‘लहर कक्ष’ बनवाए थे।

इन कक्ष की खासियत थी कि चारों दीवारों पर हिंदी की वर्णमाला, अंग्रेजी वर्णमाला, गिनती और शब्द लिखे होते थे। बच्चे खेल खेल में ही इन्हें सिखते थे। लेकिन अब ये लहर कक्ष कहीं कहीं ही नजर आते हैं।

 लहर कक्ष की पढ़ाई में खासकर उच्चारण पर ज्यादा जोर दिया जाता था और उस फंडे से बच्चों को जोर नहीं आता था। बच्चे आसानी से कुछ ऐसे शब्दों का उच्चारण सही बोलना सीख जाते थे और भविष्य में उनके लिए आसानी होती थी, लेकिन अब स्कूलों में इस पर ज्यादा ध्यान देने की बजाय शिक्षक कागजी कार्रवाई पर उलझे रहते है।

बच्चे पढ़े या नहीं, लेकिन विभाग ने कागजी कार्रवाई शिक्षकों के ऊपर इतनी थोप दी है कि वह बमुश्किल ही बच्चों को पढ़ा पाता है। खासकर बच्चो ‘ च ’ ‘ छ ’ ‘ क्ष ’ ‘ ज्ञ ’ आदि का उच्चारण बार बार कराया जाता था।

खास बात तो यह कि नौनिहाल अंग्रेजी के 26 अक्षर खुलकर बोल लेता है, लेकिन उसे हिंदी की वर्णमाला पूछी जाए तो वह नहीं बोल पाता है, भले ही किताब पढ़ लेगा, लेकिन बोलने में हिचकिचाएगा। हनुमान देखा गया है की गई बच्चे एमबीए एम कॉम भी कर लेते हैं लेकिन क ख ग नहीं बोल सकते कारण क्या हो गया है कि पारिवारिक मैं भी अब भूख लगी हुई है इंग्लिश मीडियम लेकिन जब तक हिंदी भाषा नहीं आएगी या हिंदी भाषा के अर्थ नहीं जान पाएंगे बाहर रहने वाले लोगों को तो हिंदी के अक्षर का ज्ञान नहीं है क्योंकि आजकल परिवार में भी इंग्लिश पढ़ने की चेष्टा रखते हैं और प्राइवेट स्कूलों में भी इंग्लिश पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है अगर हिंदी भाषा को महत्व नहीं दिया गया या क,घ के ऊपर महत्व नहीं दिया गया तो आगे आने वाले समय में बच्चों का भविष्य खतरे में हो सकता है

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