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राजीव नगर आवासीय योजना कहां पर अटकी

सिरोही ब्यूरो न्यूज़

रिपोर्टिंग हरीश दवे

एक तरफ तो कोई भी सरकार व न्यायालय अनुसूचित जाति, जनजाति के हितो की रक्षा, संरक्षण के लिए कटिबद्ध रहती है तथा इसके लिये कानून व प्रावधान बनाये है लेकिन सिरोही नगर परिषद क्षेत्र में अनेक प्रकरणो में निति- नियमो की बिना परवाह किये भूमाफियाओं ने अनुसूचित जाति वर्ग की कृषि भूमिया हडप ली, जिसपर बडे बडे आशियाने तक बना दिये है।

लेकिन दुसरी तरफ सिरोही नगर की राजीव नगर आवासीय योजना की 30 वर्षो से विवादित बनी अनुसूचित जाती की कृषिभूमि के संबंधित खातेदार अपने हक व अधिकार के लिए शुरु से न्यायालय के चक्कर लगा रहे है, वहीं एस.सी. हितो को ताक पर रख कर सिरोही नगर पालिका ने अपने हक मे बिना मोटेशन भरे व बिना कनुनी अधिकार के आवेदन आवंटन व निलामी से बडी रकम लेकर गैर एस.सी. को विक्रय करते की गंभीर भुल करी है,.जिसके संबंध में डबल बैंच हाईकोर्ट में चल रही अपील संख्या 1103/2017 एवं 201/2019 (रा.स. बनाम न.पालिका व अन्य) को स्वीकार कर 19 अगस्त 2019 को एससी के हित मे निर्णय पारित किया है, जिसमे धारा 42 (ख) रा. का.अधिनियम की रक्षा मे राज्य सरकार ने भी नगर परिषद् सिरोही के खिलाफ अपील संख्या 201/2019 की थी, जिसको सही व न्यायोचित मानते.हुये ड़बल बैच हाईकोर्ट ने सिंगल बैच के निर्णय को खारिज किया, जिसके कारण सिंगल बेंच निर्णय की आड मे न.परीषद का स्वीकत नामांतरण संख्या 2220 स्वत: खारीज हो गया, साथ ही इस एस.सी. की भूमि से नगर पालिका का अस्तित्व भी कानूनन समाप्त हो गया है।

 

अगर राजस्व कानूनो व प्रावधान मे एससी की कृषि भूमि नगर पालिका व ऐसे अन्य गैर एस.सी के नाम करने कराने की थोडी भी गुंजाइश होती तो हाईकोर्ट डबल बेंच मे स्पष्ट रुप से नगर पालिका व जनता के पक्ष मे ही फैशला सुनाया जाता। ऐसे ही राज्य सरकार ने भी 15.09 व 13 नवम्बर 2006 को तत्कालीन जिला कलेक्टर सिरोही को निर्देश देकर एस.सी. के पक्ष मे प्रकरण का सम्पूर्ण समाधान किया था,


उसको ही पुन: डीबी ने सही व न्यायोचित मानकर मान्य व कायम रखा है। फिर क्यो वर्ष 1988- 89 मे अजा कानूनो के विपरीत राजीव नगर आवासीय योजना के लिये स्थानिय उच्च अधिकारियो ने आज्ञा देकर एससी एसटी की भूमिया लेने की भूल की थी, तत्पश्चात नगरपालिका ने बिना अधिकार के 1989 मे आवेदन के मार्फत जनता से 500 - 500 रुपये लेने, पून: वर्ष 1999 मे आयकर विभाग व स्कूल को इसमे से भूमि देने और भोली जनता से 1000 - 1000 रूपये पुन: लेकर आवेदन व भूखण्डो की लॉटरी का लॉलीपॉप दिया। सिंगल बेंच के निर्णय की आड मे व्यवसायिक व आवासीय भूखण्ड़ो की निलामी करके फिर करोडो रूपये जनता से ले लिये, जबकि इस विवादित भूमि मे सारे खरीददारो की कानूनी स्थिति सिर्फ अतिक्रमी है।


यह भूमि 13 जून 1988 को सिटी मोनेटरिंग कमेटी की बैठक में तत्कालीन जिला कलेक्टर रोहित आर ब्रांडन, एस.डी.एम. व नगर पालिका प्रशासक भगवानसहाय सिंगल ने एससी व एसटी खातेधारक पर दवाब बना कर उनकी भूमियो के खरीद प्रस्ताव बनाये, जिसमे एस.सी. कानूनो के उल्लंघन की शुरुआत से भूल करी। ऐसी गंभीर भुल का समय पर निस्यारण नही करने से आम जनता व एससी एसटी खातेदार लफडे मे पड गये है।


राजीव नगर आवासीय योजना के नाम से नगरपालिका ने जनता से आवेदन, आवंटन व निलामी के बहाने करोडो रूपये की रकम ऐंठ के बाद पट्टे पंजियन पक्के निर्माण तक करवा कर सबको अदरझुल मे लटका दिया है। फिर भी शुरु से कानूनी जाल मे भ्रमित बने स्थानीय नेता, अधिकारी व राजस्व महकमा इत्यादि सभी इन निराधार कार्यो को रोकने में असमर्थ रहे है। जिसका खामिजा आम जनता, एससी एसटी खातेदार, सरकार ने भुगता और एससी खातेदार, उनकी बेवा, दोनो पुत्र व एक पोते तक को बेवजह आहुतिया तक देनी पडी जबकि जिला कलेक्टर ने 16.09.2006 को मार्ग दर्शन मांगकर राज्यादेशो के अनुसरण मे राजस्व रेकर्ड की दुरस्ती एवं इस भूमि मे एससी खातेदार को पुर्ववत कायम रख कर प्रकरण का पूर्व मे ही वर्ष 2006 मे पूर्णत्या निपटा दिया था। जिसकी पालना मे नगर पालिका हित का स्वीकृत किया नामान्तरण 2427 वापस 29.12.2006 को निरस्त किया था और प्रावधनो के विरुद्घ नगर पालिका के हक मे नामान्तकरण 2427 को भरने व स्वीकृत करने वाले पटवारी (बाबुसिंह) गिरदावर (बाबुलाल छापोला) तहसीलदार (जयहिन्द चारण) तीनों को विभागीय जांच से दण्ड़ित होना पडा था।


इन तमाम परिस्थितियों के बाद भी संविधान के तहत् एससी की भूमि नगर पालिका की नहीं होने की पूर्ण जानकारी आयुक्त, सभापति व पार्षदों को भी पूर्व से रही है। तभी वर्ष 2013 में पूर्व सभापति जयश्री राठौड़ एवं वर्तमान आयुक्त के कार्यकाल में एससी खातेदार से परीषद की रकम 739200/- व ब्याज लेकर वर्ष 1989 के खरीद दस्तावेज को निरस्त कराने, सभी वाद विड्रो कर इस विवाद को समाप्त कराके राजीव नगर भूमि प्रकरण के निस्तारण का प्रस्ताव किया था। जिसकी पालना में भूमि की रकम वापिस लेने का मांग पत्र 5288 दिनांक 31.12.2013 को दिया, प्रस्तावानुसार हाईकोर्ट रीट 1251/2008 को भी विधिवत् विड्रो नगरपालिका द्वारा कराया और निदेशक स्वायत शासन, जयपूर द्वारा इस सोदे को शुरु से कानूनन शून्य मानकर एससी भूमि के वसीयत गृहिता से परिषद की रकम वापस लेकर पुर्व के पंजिकृत दस्तावेज को संबंधित विभाग से निरस्त कराने के निर्देश पारीत कर रखे है। लेकिन एससी हितो पर कुठाराघात करने वाले भूमाफियाओ के मददगार कुछ पार्षदो की टुकडी, नपा के विधि संबंधित बाबुओ और तत्कालीन विधिक सलाहकार ने जुगल बंदी करके अपने निजी स्वार्थो के चलते निति नियमो, राजपत्रो राज्यादेशो इत्यादि सबको ताक पर रखकर इस प्रकरण मे सम्पूर्ण प्रशासन को भ्रमित करके प्रकरण को ओर विवादित बना दिया। नगरपालिका एवं जनता की आंखो पर पट्टी व कुहनी गुड लगा कर हाईकोर्ट की रीट व अन्य वाद विवादों में नपा, सरकार, एससी और जनता के लाखों रूपयो का व्यर्थ चुना लगवा दिया, जिसमे सभी अंदर अंदर परेशान है। तथापि तथ्यों को छुपाते हुये झूठे तथ्य प्रस्तुत करके सिंगल बैच में राज्य सरकार व एस.सी. के खिलाफ दिनांक 11.10.2017 को फैसला करवा दिया। तत्पश्चात जरुतमंद गरीबो को भूखण्ड देने के बहाने स्थानिय राजस्व उच्च अधिकारियो को सामिल कर बिना प्रस्ताव पारीत किये करोड़ो की निलामी करके भारी रकम जनता को फिर से झांसे में ड़ालकर ले ली।

जबकि आर्दश सोसायटी की डंस से सिरोही की जनता पहले से आर्थिक मंदी व जहर मे उलझी झुलसी हुई थी अब फिर हाईकोर्ट डीबी के निर्णय के बाद भी इस भूमि मे बडी बडी रकम फसाने वाले सभी आखीर अतिक्रमी ही बने हुये है।
आदर्श सोसायटी के चर्चित पूर्व पालिकाध्यक्ष विरेन्द्र मोदी एवं सुखदेव आर्य के कार्यकालो में राजीव गांधी आवासीय योजना की भूमि संबंधित एससी के पक्ष मे राज्यादेशो निर्देशो की विरोधाभाष पालना करने से इस प्रकरण को वाद विवदो और व्यर्थ दावपेचो में उलझा कर विधिविरुद्ध ताकते दिखा कर ओबलाइज के बहाने आयकर विभाग सिरोही से रकम लेकर करीब सवा बिघा एससी की विवादित भूमि पकडा दी और इसी मे एक स्कूल को भी भूमि आवंटित कर दी । साथ ही 1989 के आवेदनो के आम जनता से लिये 500 रूपये का पालिका ने कोई ठिकाना नही किया था और इनके कार्यकालो मे भी लॉटरी से भूखण्ड देने के धोके मे डालकर आमजन से आवेदन के जरिये लाखो रुपये फिर से ले लिये । तत्पश्चात साहुकार बनने के लिये 9 दिसम्बर व 20 दिसम्बर 2005 को राज्य सरकार जयपुर की बिना जानकारी के विधि शाखा से नगर पालिका के पक्ष में नामान्तकरण भरवाने के लिये प्रावधानो के विपरीत विधिक राय पत्र लाये, जिसको तत्कालीन जिला कलेक्टर ने राज्य सरकार के पुन: ध्यान मे डालकर एससी प्रावधानो की रक्षा मे राय पत्रो को 15.09.2006 को विड्रो करवाये।

अंत मे हाईकोर्ट डीबी ने इस भूमि मे एससी की भूमिका को कानुनी मानकर स्पष्ट निर्णय कर दिया है और आगे निर्णय मे एकोडेंस विथ लॉ, ओपिनियन और इनकेस जैसे शब्दो का प्रयोग करके इस एससी की भूमि मे निति नियमो के विपरीत जो भी गेर एससी फसाने का रायता फेलाया है, उसका समाधान कानून के दायरे मे रहकर स्पष्ट करने का अप्रत्यक्ष जिम्मा स्थानीय अधिकारियो को सोपा है। तो अब देखना है कि डीबी निर्णय मे कायम रखे एसी हितो के आधार पर पूर्व के प्रकरणो मे उलझी जनता को सुकन मिलता है या अभी भी देरी का मुह देखना पडेगा। इस भूमि मे फसो को भी न्याय मिलेगा या ओर भी विवादो मे उलझना होगा।

नगरपरीषद मे तो अभी भी ऐसा प्रतित हो रहा है कि गलतीयो पर पर्दा डालकर इस भूमि मे फसे अतिक्रमी अभी नही जागे। जबकि एससी के भूमि प्रकरणो मै सभी को जानना जरुरी है कि इन कानुनो मे सिर्फ एससी ही सुरक्षित है, उसे उलझाया जा सकता है, किंतु इनके कानुनो के तहत् इनकी कृषि भूमियो को सरकार भी गेर एससी को नही दे सकते है, चाहे बैंक ऋण की कुर्क कृषि भूमि भी वापस आंबटन कृषिभूमि अधिनियम 1970 के तहत् सरकार को एससी एसटी की कृषि भूमिया वापस केवल एससी व्यक्ति को आंबटित करनी होती है।

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