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भाषा शिक्षण में सरकार के दोगले आचरण की निंदा

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व शिक्षा मंत्री को ज्ञापन प्रेषित।

सिरोही, हरीश दवे | राजस्थान सरकार भाषायी शिक्षा को लेकर दोगला आचरण करके संविधान की भावनाओं के प्रतिकूल आचरण कर रही है। राजस्थान की सरकार उर्दू भाषा तथा मदरसों पर मेहरबान है। राजस्थान में हजारों उर्दू पढ़ाने वाले वरिष्ठ अध्यापक व व्याख्याता नियुक्त हैं । लेकिन उर्दू पढ़ने वाले विद्यार्थी विद्यालयों में नहीं है ।राजस्थान मे हजारों उर्दू के व्याख्याता व वरिष्ठ अध्यापक 0 नामांकन के विद्यालयों मे बैठकर वेतन उठा रहे।दूसरी तरफ राजभाषा हिन्दी , सहयोगी अन्तर्राष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी ,भाषाओं की जननी व वेद भाषा संस्कृत के अध्यापक , वरिष्ठ अध्यापक व व्याख्ताओं के हजारों पद रिक्त है ।पंचायत मुख्यालय पर चार पांच वर्ष पूर्व क्रमोन्नत उच्च माध्यमिक विद्यालयों में सात हजार हिंदी व सात हजार अंग्रेजी विषय व्याख्ताओं के पद भी स्वीकृत नही किये है ।राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ ( भामसं )के मिडिया प्रभारी गोपालसिंह राव ने बताया कि सिरोही जिले में भी उर्दू व्याख्याता के 5 पद स्वीकृत है । जिसमें से दो कार्यरत है ।

उर्दू वरिष्ठ अध्यापक के 66 पद स्वीकृत है जिसमें 50 के लगभग भरे हुए हैं ।लेकिन सिरोही जिले की राजकीय माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालय में उर्दू का नामांकन जीरो होने के बावजूद व्याख्याता व अध्यापक कई वर्षों से बैठे हैं , उर्दू के छात्र नहीं होने के बावजूद वह प्रतिमाह वेतन भी उठा रहे हैं ।लगभग यहीं हाल राजस्थान के सभी जिलों मे है । राजस्थान सरकार ने वर्ष 2012 में स्कूलों में उर्दू विषय के व्याख्याता व वरिष्ठ अध्यापकों  रिक्त पदों पर नियुक्ति दी थी । लेकिन पिछले 9 सालों में इन स्कूलों में उर्दू भाषा सीखने वाले विद्यार्थी नहीं पहुंचे । ऐसे में उर्दू के व्याख्याता व वरिष्ठ अध्यापक बिना उर्दू पढ़ाए वेतन उठाते हैं । खानापूर्ति के नाम पर अन्य विषयों का शिक्षण करा कर अपना समय जाया कर रहे हैं ।सरकार की मेहरबानी से उर्दू विषयाध्यापकों की मौज है । निदेशालय बीकानेर ने प्रदेश के सभी जिला शिक्षा अधिकारियों  को एक दो वर्ष पूर्व पत्र जारी करके इस विषय पर गहन चिंतन मनन किया था । 

लेकिन उसको वापस ठंडे बस्ते में डाल दिया ।अकेले सिरोही जिले के स्कूलों में उर्दू में केवल 3 विद्यालयों में उर्दू विषय संचालित है   जहां नाम मात्र का नामांकन है ।शिवगंज की दादाबाड़ी में 31 विद्यार्थी, राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय मंडार में 18 विद्यार्थी ,  राजकीय माध्यमिक विद्यालय आकराभट्टा में 4 विद्यार्थी कोविड से पहले नामांकित थे । अन्य अनेकों  विद्यालयों में उर्दू का नामांकन नही होते हुए भी पदस्थापित व्याख्याता व वरिष्ठ अध्यापक आराम से बैठकर वेतन उठा रहे हैं ।राव ने बताया कि धर्मनिरपेक्ष देश में भाषाई भेदभाव को किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जाता है । भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार व राज्य की सरकारें सभी भाषाओं को एक नजर से देखती है । भाषाओं को बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने अपनी मुद्रा पर 15 भाषाओं को अंकित किया है । हिंदी राजभाषा और सहयोगी अंग्रेजी राजभाषा है । अन्य  15 भाषाएं असमी, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया ,पंजाबी, संस्कृत, तमिल तेलुगू ,उर्दू को  नोटों पर अंकित किया गया है । जिसे इन भाषाओं को भी बढ़ावा मिले । साथ ही भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाएं  को शामिल किया है ।

लेकिन राजस्थान में उर्दू विषय को छोड़कर किसी अन्य भाषा को महत्व नहीं मिल रहा है । शिक्षा विभाग की स्थिति देखे तो यहां पर राजभाषा हिंदी, अंग्रेजी संस्कृत भाषा के हजारों पद अध्यापक , वरिष्ठ अध्यापक व व्याख्याताओं पद रिक्त हैं । पंचायत मुख्यालय पर क्रमोन्नत राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालयों में छह वर्ष बाद भी 9000 हिंदी व अंग्रेजी के व्याख्याताओं के पद स्वीकृत नहीं किए हैं । संस्कृत भाषा के वरिष्ठ  शिक्षक तथा व्याख्याताओं के पद रिक्त भी रिक्त है । राजस्थान में हिंदी ,अंग्रेजी, संस्कृत विषय के अध्यापकों की स्थिति उर्दू के अध्यापकों से बदतर स्थिति में है । इस प्रकार के भेद से हिंदी , अंग्रेजी , संस्कृत  भाषाई  शिक्षकों में भयंकर रोष पैदा हो रहा है ।एक तरफ जहां हिंदी राजभाषा के अध्यापकों को 23 वर्ष की सेवाओं के बावजूद  पदोन्नति नहीं मिल रही है।दूसरी तरफ सरकार की तुष्टीकरण की नीति से उर्दू शिक्षकों को मौज करने का अवसर मिल रहा है । राजस्थान मे राजभाषा हिन्दी , सहयोगी अंग्रेजी , संस्कृत सहित सभी भाषाओं के साथ न्याय हो।सरकार हिन्दी, अंग्रेजी , संस्कृत  अध्यापकों व वरिष्ठ अध्यापकों की लम्बित पदोन्नति शीघ्र करे ।सभी उच्च माध्यमिक विद्यालयों मे  हिन्दी ,अंग्रेजी , संस्कृत के पद स्वीकृत करे ।कर्मचारी महासंघ उर्दू पढ़ने वाले विद्यार्थी जहाँ नही है वहाँ से उर्दू व्याख्याता व वरिष्ठ अध्यापक को हटाकर जहाँ उर्दू के विद्यार्थी है वहाँ लगाने की पूरजोर मांग करता है ।

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