संपादकीय

हम पुरातन संस्कारवादी भारतीय!

बदलते परिवेश और ढलती पुरातन परंपरावादी संस्कृति के उदाहरणों का उचित साम्य हिंदुस्तान के अलावा कहा मिलेगा। हम पुरातन संस्कारवादी भारतीय नित नए दिन एक संस्कार को अस्त करने पर तुले है । हमारे ऋषि मुनियों की शोध और उनकी तपस्या के फलारूप जो सामर्थ्य भारतीयों ने प्राप्त किया शायद ही कोई कर पाया। यह चाहे ज्ञान हो,विज्ञान हो या नैतिक मूल्यों का उत्पादन हमसे बेहतर कोई नहीं जानता। आज विश्व एक भयानक बीमारी से ग्रस्त है ओर सबकी निगाह भारत पर है क्युकी जनसंख्या के आधार पर विश्व के द्वितीय पायदान पर बैठे देश की स्थित का अंकन करना चाहते है। सकल विश्व जानता है कि भारत के पास इतने चिकित्सकीय संसाधन नहीं है और ना ही यहां के लोगों में अपने जीवन के प्रति जागरूकता है यह इसलिए कहना पड़ा क्युकी यहां की युवा पीढ़ी को तेज रफ्तार में बाइक चला शहर की स्थिति का आकलन करना है, उनको घर से बाहर निकल अपनी बहादुरी का परिचय देना है और फ़ैला देना है झूठ भरा मैसेज जो उन्हें किसी ने भेज दिया है किसी विशेष मकसद से।उन्हें करनी होती है भ्रांतियों को सच ओर सच से भरी वास्तविकता को जूठ। खैर इस देश में प्राण न्योछावर कर देश रक्षा करने वाले सैनिक,पुलिस, जवान, डॉक्टर, नर्स एवं सभी कोरोना योद्धा है जो आज कोरोना से लोहा लेने को तैयार है जो खुद की जान जोखिम में डाल इन तथाकथित बहादूरों व स्वयं के दुश्मनों कि जान बचाने को खड़े है।

- अवधेश आढ़ा

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